खुला पत्र सेवा में, आदरणीय पूर्व उप-राष्ट्रपति , श्री हामिद अंसारी जी,
आपको पिछले १० साल से भारत के उप-राष्ट्रपति के साथ-साथ राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य करने का सम्मान और स्वाधिकार मिला था। यह अत्यंत सम्मानित आसन हैं, जो अपने धारक से हर तरह से जिम्मेदार और शालीन होने की अपेक्षा रखता है। अतः संभव है कि आप मेरे सदमे और मायूसी को समझ सकते हैं, जो कि भारतीय मुसलमानों की असुरक्षा को लेकर आपकी हाल की टिप्पणी से है। ज़ाहिर तौर पर एक भारतीय मुसलमान होते हुए, आपको विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के उप-राष्ट्रपति बनने का गौरव दो कार्यकाल के लिए प्राप्त हुआ। बहरहाल, मुझे आपको यह समझाने की अनुमति प्रदान करें कि आपका मूल्यांकन और ग़लत कैसे हो सकता है और इससे क्यों किसी छिपे हुए प्रचार की दुर्गंध आती है।
एक हिन्दू होने के नाते, जो अपने धर्म को अत्यंत गंभीरता से लेता है, मैंने हमेशा अपने नैतिक विवेक को नियमावली के रूप में देखकर अपना जीवन जीने का निश्चय किया है। विशेषकर भारत जैसे देश में बहुसंख्यकों का हिस्सा होते हुए, मेरा नैतिक विवेक मुझे अल्पसंख्यकों का ध्यान रखने के लिए पाबंद करता है। इसमें यह जोड़ते हुए कि हम एक देश के रूप में महात्मा गाँधी के भारत के दर्शन को पूरा करने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं और हमारा देश डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान (वह संविधान जिसे मैं दुनिया में सर्वश्रेष्ठ लिखित दस्तावेज़ मानता हूँ) से शासित होता है। वहीं हम यानी बहुसंख्यक, अल्पसंख्यकों का ध्यान रखने हेतु नैतिक रूप से बाध्य हैं।
हालाँकि हाल के वर्षों में नेहरूवादी सोच ने कई लोगों की विचार प्रक्रिया का अपहरण कर लिया है, जो कि अधिक तर यूपीए सरकार के पिछले दस साल में राजनीतिक लाभ के लिए अल्प संख्यकों के तुष्टिकरण में शामिल रहने से ऐसे प्रोत्साहन मिला। पहले भी कांग्रेस की सरकारें अल्पसंख्यकों को खुश रखने और उनके हितों को दरकिनार करते हुए, जानबूझकर तुष्टिकरण की राजनीति में लिप्त रहीं। इसके अतिरिक्त , ऐसे कई परिवार थे जो कि कई वर्षों तक अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की इस व्यवस्था का लाभ उठाते रहे और उन क्षेत्रों में कामयाबी हासिल करते रहे, जो कि योग्यता अथवा श्रेष्ठता के आधार पर नहीं थे। अब अगर आप अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के उस सिद्धांत पर विश्वास नहीं करते, तो मुझे ऐसा कोई कारण नहीं दिखता, जिससे आप यह सोचें कि भारतीय मुसलमान असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
इस बात को स्पष्ट कर देते हैं – जहाँ आप एक अल्पसंख्यक हो सकते , भारतीय मुसलमानों को कभी भी किसी भी अवसर से वंचित नहीं किया गया और ना ही उन्हें कभी दूसरे दर्जे के नागरिक की तरह माना गया। आपको भारत के उप-राष्ट्रपति के तौर पर काम करने का सम्मान प्राप्त हुआ, मगर हमें एक मुस्लिम मुख्य न्यायाधीश के साथ-साथ मुस्लिम मुख्य निर्वाचन आयुक्त भी मिल चुके हैं। भारत को एक मुस्लिम राष्ट्रपति के रूप में ‘भारतरत्न’ डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम मिले, जिन्होंने करोड़ों भारतीयों को अपने विचारों से प्रेरणा दी। भारत दुनिया की दो सबसे प्रसिद्ध मुस्लिम विश्वविद्यालयों – अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिल्लिया इस्लामिया का भी घर है और कुछ गैर-इस्लामिक देशों में से एक है, जो कि उर्दू में पीएचडी (सिर्फ मुस्लिम विश्वविद्यालयों में ही नहीं !) भी प्रदान करता है। भारत में हम सभी मुस्लिम त्योहारों को उसी प्रेम और उत्साह के साथ मनाते हैं, जैसा हम हिन्दू त्योहारों के साथ करते हैं। हमारे फिल्मी -जगत में तीन मुस्लिम पुरुषों का वर्चस्व है और सभी को उसी तरह की प्रसिद्धि मिलती है, जो कि पूरे भारत से उनको मिलने वाले प्यार के बिना संभव नहीं था। हमारे मुस्लिम क्रिकेटरों (तुरंत मेरे मन में पठान भाइयों का नाम आया) को भी उतना ही प्यार मिलता है, जैसा कि उनके हिन्दू समकक्षों को मिलता है और सानिया मिर्ज़ा को भारत की बेटी माना जाता है। आराम से सोचिए, भारत में मुसलमानों ने प्रगति की है, फिर भी आपको लगता है कि वह असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और उनमें असहजता की भावना है? मुझे लगता है कि जब लोग तरजीही व्यवहार के आदि हो जाते हैं, तब समान व्यवहार भी भेदभाव की तरह लगता है, क्या आपको ऐसा नहीं लगता ?
आपके उप-राष्ट्रपति होने के कार्यकाल के दौरान, तब आप उस स्थिति में थे जहाँ आप एक उदाहरण पेश कर सकते थे। बावजूद इसके आपने अपने कार्यालय के आखिरी दिन, ऐसी बेख़बर और बेचैन करने वाली टिप्पणी की, जिससे मैं यह सोचने लगा कि आपके मुताबिक मुसलमानों को सुखकर अनुभव करवाने के लिए आखिर ऐसा क्या किया जाए ? हाल ही में सत्रह मुस्लिम छात्र रक्षाबंधन मनाने मेरे घर आए थे और हमने साथ भोजन किया था। उन्हों ने मुझे बताया कि वह पूरी तरह से सुरक्षित महसूस करते हैं, क्योंकि वर्तमान सरकार उन्हें कुछ भी बोलने का अधिकार देती है। वहीं हमारी तरह मुस्लिम समुदाय भी मध्यमार्गी-दक्षिणपंथी राजनीति में विश्वास करता है और आपसे यह सवाल पूछना चाहता है कि – आपने भारतीय मुसलमानों के उत्थान के लिए क्या किया ? यह हम हिन्दू ही थे, जिन्होंने मुस्लिम महिलाओं को पर्दा प्रथा से मुक्त कराया। क्या उप-राष्ट्रपति रहते हुए आपने इस बारे में कुछ कहा था ? क्या आपने कभी भी हलाला और तीन तलाक़ के नाम पर शौहरों द्वारा शोषित हो रही मुस्लिम बेटियों को बचाने को लेकर कहा? क्या आपने कभी भी मुस्लिम छात्रों को इस्लाम पढ़ाने वाले अनधिकृत कर्मियों (इस्लाम तथा भारतीय संविधान द्वारा अनधिकृत) के बजाए, सिर्फ अधिकृत स्कूलों में ही पढ़ने के लिए प्रबुद्ध किया?
मुझे #HinduDeniedEquality के तहत इसलिए विरोध करना पड़ा कि तथाकथित और परिकल्पित‘मुस्लिम-विरोधी’बीजेपी सरकार के रहते हुए भी मुसलमानों को एयरपोर्ट परिसर में नमाज़ अदा करने के लिए किसी इजाज़त की दरकार नहीं होती। मगर उसी एयरपोर्ट परिसर में हिन्दुओं को किसी तरह की पूजा करने की अनुमति नहीं होती। वहीं सिर्फ एयरपोर्ट ही नहीं, बल्कि आज-कल आप कहीं भी जाए, आप देखेंगे और सुनेंगे कि गैर-ज़रूरी उत्सा ह और कट्टरता के साथ नमाज़ लाउडस्पीकरों के साथ अदा की जा रही है (कोर्ट के आदेशों की भी अवहेलना करते हुए)। मगर हिन्दुओं को छोटी से छोटी क्रिया के लिए भी अनुमति लेनी पड़ती है। क्या यहाँ वास्तव में हिन्दू को असुरक्षित महसूस नहीं करना चाहिए?
अंत में यहीं कि आपके शब्दों ने ठीक उसी तरह इस बात को दोहराया, जैसे सबसे चहेते फिल्मी सितारे आमिर ख़ान ने पिछले साल किया था – देशभर से खुद को मिले प्यार और सम्मान का आनंद लेकर (जो वर्तमान सरकार के कुछ मुख्य कार्यक्रमों के ब्रैंड एम्बेसडर भी हैं) उस पर वही भारत में असुरक्षा की बातें कर अवसरवादी ढंग से थूक ना। अंसारी साहब, अगर आप वाकई में यह देखना चाहते हैं कि भारतीय अल्पसंख्यक खुद को कितना सुरक्षित महसूस करते हैं, तो आप कुछ वक्त निकालकर एक पारसी लिपिक, यहूदी शिक्षक, एक शिया मुस्लिम शिक्षक या फिर एक ईसाई प्रोटेस्टेंट शिक्षक से मिलने की कोशिश करें। आप यह पाएंगे कि वह खुद को कितना सुखद और सुरक्षित अनुभव करते हैं। ऐसी उम्मीद है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति होते हुए आप शिक्षा व्यवस्था में अल्पसंख्यकों की उपस्थिति को बेहतर समझ सकते हैं। मुझे विश्वास है कि सभी भारतीय आपके प्रति बहुत सम्मान रखते हैं, क्योंकि आप एक विद्याविद हैं, प्रतिष्ठित विश्वविद्याल य के कुलपति रह चुके हैं और दो बार देश के सबसे सम्मानित पदों में से एक पर भी रह चुके हैं। आपने अपने करियर में दुनियाभर के विभिन्न वैश्विक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है। परंतु क्या आपने कभी भी बहुसंख्यकों की पीड़ा समझने की कोशिश की ?
– विनीत गोयंका
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