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अमेरिकी या पश्चिमी देशों से द्विपक्षीय सम्बन्धों पर जोर देने में कोई बुराई नहीं है पर इन सबके बीच भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी महाशक्ति रूस की उपेक्षा कतई नहीं कर सकता। भारत को ये हमेशा याद रखना चाहिए रूस ने संयुक्त राष्ट्र संघ में एक नहीं बल्कि कई बार भारतीय हितों की जमकर तारीफ की है और हमारे देश के साथ खड़ा दिखा है।
आज के दौर में भारत और रूस दोनों ही आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। दोनों मुल्क आर्थिक प्रगति के नए सोपान लिख रहे है, और ये भी उस वक़्त पर जब दुनिया के दूसरे बड़े सूरमा देश वैश्विक मंदी से बाहर निकलने के रास्ते खोजने को विवश हैं।
दुनिया के पटल पर ये दोनों उभरती हुई आर्थिक महाशक्तियाँ आज हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़े जा रही हैं। भारत हर जटिल से जटिल मुद्दे पर रूस से मिलने वाले राजनैतिक और कूटनीतिक सहायता का मुरीद रहा है। भारत के लिए ये राहत की बात है कि रूस अपनी चरमराती अर्थव्यवस्था को संभालने में कामयाब रहा है और एक बार फिर दुनिया को चुनौती देने के लिए निकल पड़ा है।
आज के दौर की विकट भौगोलिक और राजनैतिक परिस्थितियों में दोनों देशों ने अपनी विदेश नीति को बखूबी संभाला है और इस बात का भी ख़याल रखा है, कि इससे इनके कई दशकों के पारम्परिक और सामरिक रिश्तों पर आंच ना आये।
दशकों बाद भी कई क्षेत्रों में रूस और भारत का द्विपक्षीय सहयोग सतत रहा है और उसमें कोई रुकावट नहीं आई है। इन सबसे अलग रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों का सहयोग अभूतपूर्व है।
आज की तारीख में रूस भारत की 60 फीसदी रक्षा जरूरतों को पूरा करता है। उल्लेखनीय है कि भारत के कुछ बहुत ही महत्वाकांक्षी रक्षा प्रोजेक्ट रूस के सहयोग से ही चल रहे हैं, चाहे देश में निर्मित हो रहा न्यूक्लियर सबमरीन अरिहंत हो या पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान।
रूस और भारत की दशकों पुरानी दोस्ती की महागाथा यहीं नहीं रूकती। याद रहे की रूस ने भारतीय एयर फोर्स के लिए पहली बार अत्याधुनिक मिग-35 लड़ाकू विमान देने की पेशकश की थी और साथ ही साथ सुखोई एसयू-30 एमके-आई रशियन फाइटर एयरक्राफ्ट बेचने के संधिपत्र पर भी हस्ताक्षर किये थे।
रूस के साथ टी-90 तोपें और ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल के 200 एयर लांच्ड वर्ज़न्स के निर्माण का करार भी है। आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि भारतीय रक्षा सम्बंन्धो के क्षेत्र में अमेरिका और इज़राएल के प्रवेश के बावजूद रूस आज भी भारतीय सैन्य जरूरतें पूरी करने वाले सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
भारत रूस रिश्तों की बात हो तो उनके साझा परमाणु कार्यक्रम को कैसे नज़रअंदाज़ करें। परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में कई कदम आगे बढ़ते हुए रूस ने भारत-रूस परमाणु सहयोग कार्यक्रम के तहत भारत के दक्षिण में कुडनकुलम में दो परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण कर लिया है और दो अतिरिक्त इकाइयों के लिए बातचीत भी चल रही है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में भी, ग्लोनास पर भारत-रूस एकसाथ चल रहे हैं। अब भारत रूस से उपग्रहों को आसानी से ट्रैक करने की तकनीकी लेने पर बात कर रहा है और साथ मिलकर चंद्रयान प्रोजेक्ट को पूर्ण करने की संभावनाएं भी तलाश रहा है।
ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले सालों में भारत-रूस ऊर्जा सहयोग को भी बढ़ावा मिलेगा। भारत ज्यादातर तेल मध्य पूर्व के अस्थिर क्षेत्र से आयात करता है, पर अपने विकास की वर्तमान उच्च दर को बनाए रखने के लिए भारत के लिए ये आवश्यक है कि वो ऊर्जा आयात के नए सुरक्षित स्रोत तलाश करे।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक, अमेरिका और चीन के बाद भारत दो हज़ार पच्चीस तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा की खपत करने वाला देश होगा। और हर किसी को इस बात का यकीन है कि भारत का सबसे निकट का भरोसेमंद रणनीतिक साझेदार होने के नाते आने वाले दशकों में रूस भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार रहेगा।
इसी साल मई में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन रूस के सोची में एक शिखर वार्ता के दौरान मिले। यक़ीनन ये मुलाकात दुनिया के आकर्षण का केंद्र रही। मुलाक़ात में दोनों देशों के नेताओं के बीच नयी साझेदारियों और सामरिक रणनीतियों पर बात हुई। बदलते राजनैतिक और वैश्विक परिदृश्य में ये एक बेहतरीन कदम कहा जा सकता है।
एक ऐसे माहौल में जब कि अमेरिका भी भारत के करीब आने की कोशिश कर रहा है, मोदी सरकार चाहती है कि चीन और रूस जैसे देशों से भी उसके सम्बन्ध प्रगाढ़ और मैत्रीपूर्ण बने रहें। शायद यही वजह रही कि चीन ने वुहान अनौपचारिक शिखर वार्ता में भारत को आमंत्रित किया तो रूस ने भी सोची अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए भारत को बुलावा भेज दिया।
अमेरिका और रूस में बढ़ते कूटनीतिक तनातनी अमेरिका और चीन में छिड़े व्यापार युद्ध के इस दौर में रूस को भारत सरकार ने आश्वस्त कर दिया है भारत का कोई भी सामरिक हित या फिर रूस से हथियारों की खरीद-फरोख्त के किसी भी कार्यक्रम में अमेरिकी दखल का प्रभाव नगण्य होगा। यही वजह रही की अमेरिका के ज़बरदस्त विरोध के बावजूद रूस ने भारत को एस 400 जैसी शक्तिशाली एंटी मिसाइल तकनीक बेची।
ये सामरिक रक्षा साझेदारी उस परिस्थिति में और भी अहम है जबकि अमेरिका इस सौदे की स्थिति में भारत पर CAATSA (Countering America’s Adversaries Through SanctionsAct) प्रावधानों के तहत रोज बंदिशों की धमकी दे रहा है। भारत में रूस के राजदूत निकोलाई क़ुदसेव ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प की धमकी का प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि अमेरिका CAATSA के प्रावधानों को एक अस्त्र की तरह इस्तेमाल कर रहा है, पर भारत और रूस इस रक्षा सौदे के लिए प्रतिबद्ध हैं और ये होकर रहेगा। याद रहे कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत को चेतावनी दी थी कि अगर ये रक्षा करार हुआ, तो भारत को प्रतिबन्ध झेलने पड़ेंगे।
सामरिक और राजनैतिक परिस्थितियों के बीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक पटल पर जिस कुशलता से रूस के साथ भारत के रिश्तों को प्रतिस्थापित किया है उससे उनके सहयोगी ही नहीं बल्कि धुर विरोधी भी दंग हैं। शायद यही वजह है की देश-दुनिया के बड़े दिग्गज राजनेता भी आज पीएम मोदी की दूरगामी विदेश नीति के कायल हैं।
रिश्तों की कसौटी पर एक बार फिर भारत-रूस एक दूसरे को कसने लगे हैं। दोनों की दोस्ती एक दो बार नहीं जाने कितनी बार मिसाल बनकर दुनिया के सामने खड़ी दिखी है। पर अब रूस और भारत को साथ बैठकर ये सोचना होगा कि आखिरकार क्या वजह रही जिनसे पिछले सालों में दोनों के रिश्तों में एक ठहराव आया, साझेदारियां ठप्प पड़ गई और पारस्परिक भरोसे में कमी आई। भारत को नए सिरे से इस बेहतर संबंध को और बेहतर करना होगा।
अमेरिकी या पश्चिमी देशों से द्विपक्षीय सम्बन्धों पर जोर देने में कोई बुराई नहीं है पर इन सबके बीच भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी महाशक्ति रूस की उपेक्षा कतई नहीं कर सकता। भारत को ये हमेशा याद रखना चाहिए रूस ने संयुक्त राष्ट्र संघ में एक नहीं बल्कि कई बार भारतीय हितों की जमकर तारीफ की है और हमारे देश के साथ खड़ा दिखा है।
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