रक्षा क्षेत्र में देश को दशकों पीछे धकेलने वाली कांग्रेस को सुप्रीम कोर्ट ने किया बेनकाब

December 19, 2018

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HIGHLIGHTS : कांग्रेस द्वारा फैलाया गया झूठ एक बार फिर बेनकाब हुआ है, और इस बार इस झूठ का  पर्दाफ़ाश किया है देश की सबसे बड़ी अदालत ने. सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर राफेल पर डाली गईं सभी जनहित याचिकाओं को जिस तरह से खारिज किया है वह मोदी  सरकार के साथ साथ देश के करोड़ो लोगों की विजय है.  किसी भी बड़े लोकतंत्र में विपक्ष द्वारा सत्तापक्ष से सवाल पूछना एक आम प्रक्रिया है, लेकिन राफेल मुद्दे पर कांग्रेस ने सरकार पर जिस तरह  के  बेबुनियाद औरपूर्वाग्रह से ग्रसित आरोप लगाए उसने सारे लोकतांत्रिक मूल्यों को ताक पर रख दिया  और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल दिया. वास्तविकता से परे जाकर कांग्रेस ने झूठकी बुनियाद पर  जिस तरह से आरोप गढ़े वह समझ से परे है.

मुख्य न्यायाधीश तरुण गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की खंडपीठ ने राफेल मामले में अपने निर्णय में  साफ़ साफ़ कहा कि न्यायालय के पास इस डील की प्रक्रिया पर संदेह करनेकी कोई वजह नहीं है और न्यायालय इस प्रक्रिया से संतुष्ट है. भाजपा सरकार ने बार बार राफेल डील की पारदर्शिता पर अपना  पक्ष स्पष्ट किया है. सरकार ने हर बार यही कहा है छत्तीस राफेल लड़ाकू विमानों की फ्लाई वे स्थिति में खरीदने का फैसला भारतीय वायुसेना की  ज़रूरतों को देखते हुए किया गया था.

कांग्रेस के लिए यही बेहतर होगा कि वो अपने कार्यकाल का मंथन करे जहाँ रक्षा  मंत्रालय की कमान पूरे दस साल एक ही आदमी के हाथ में रही जिनकी अदूरदर्शिता और अकर्मण्यता ने भारतीय रक्षा तंत्र को सालों पीछे धकेल दिया।

2007 में पहली बार भारतीय वायु सेना ने Medium Multi Role Combat Aircraft (MMRAC) की मांग सरकार के सामने रखी. तत्कालीन यूपीए सरकार ने इन विमानों की ख़रीद के लिए टेंडर मंगाए और फ्रेंच जेट मेकर दसा एविएशन जिसने सबसे सस्ती बोली   लगाई, उसे आधिकारिक रूप से अनुबंध के लिए चुन लिया गया. शायद कांग्रेस को ये याद नहीं रह गया है  कि यूपीए सरकार और दसा एविएशन के बीच एक सौ छब्बीस विमानों की ख़रीद के लिए लम्बे समय तक बात होती रही पर कीमत और ख़रीद के तौर तरीकों पर आखिर तक दोनों के बीच किसी तरह की सहमति नहीं बन पाई. कांग्रेस का ये दावा कि दसा एविएशन के साथ कीमत को लेकर समझौता हो गया था महज एक पार्टी की कोरी कल्पना है जिसे कल्पनाओं में जीना पसंद है.

राफेल को बे-वजह के विवाद में घसीटकर कांग्रेस अपने साल दर साल की नाकामियों को छुपाने का प्रयास  कर रही है और लोगों के बीच में ये झूठा संदेश देने की कोशिश कर रही है कि उनके लिए देश सबसे पहले है. 2019 के आम चुनाव की आहट के साथ ही इस मुद्दे को भुनाकर देश के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने की कांग्रेस की ये हताशा समझी जा सकती है.

मोदी सरकार को कांग्रेस की इस ऐतिहासिक भूल सुधार में  4 साल से ज्यादा लग गए. राफेल डील से ना सिर्फ देश की सीमाएँ सुरक्षित हुईं  बल्कि पूरी  दुनिया में भारत का कद भी बहुत ऊंचा हुआ है. कुछ लोग भले ना मानें  पर राफेल डील बीजेपी सरकार की विदेश नीति की सबसे बड़ी  उपलब्धि है. इस डील के पूरा होने के साथ ही दुनिया भारत को एक ऐसे शक्ति के रूप में देखने लगी है जो त्वरित फैसले लेता है और जहां ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ पर ज़ोर है. पूरे विश्व में ये संदेश पहुंचा है कि देशमें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक ऐसी सरकार है जिसके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्र हित सर्वोपरि है.

दुर्भाग्यवश, कांग्रेस को ये सब बातें न कभी समझ आई हैं और ना कभी आएँगी. कांग्रेस के पूरे कार्यकाल के दौरान निरंकुश शासन, व्यक्तिगत हित, व्यक्तिगत लाभ और व्यक्तिगत महिमामंडन ही सत्ता का आधार रहे. कांग्रेस के नेता जिस तरह भ्रष्टाचार में लिप्त रहे वो सब जानते हैं और शायद यही वो नज़रिया है जिसकी वजह से कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर व्यापारिक पक्षपात का झूठा और बेबुनियाद आरोप लगाना शुरु किया. भाजपा सरकार ने कार्यपद्धति में पारदर्शिता बरकरार रखने के लिए जिस तरह सेहर जानकारी आम आदमी तक पहुँचाई है वह पारदर्शिता पर सरकार की प्रतिबद्धता दर्शाता है.

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